वह जमाना और था जब डिवाइस खामोशी से घर का
हिस्सा हुआ करते थे और स्विच ऑन करने पर ही आप तक अपनी सेवाएं पहुंचाते थे।
अब सब बदल चुका है, हर डिवाइस की अपनी आवाज है। ऐसे में स्पीकरों की
दुनिया अब केवल म्यूजिक सिस्टमों तक ही सीमित नहीं रह गई है। बात कंप्यूटर
की हो, टीवी की या फिर टैब और मोबाइल की, हर डिवाइस अपने आप में एक म्यूजिक
सिस्टम है और स्पीकर के सहारे यह आपकी दुनिया को आवाजों से सराबोर कर सकता
है। अगर इस्तेमाल के हिसाब से देखें तो स्पीकर्स को दो कैटिगरी में बांटा
जा सकता है। एक वे जो म्यूजिक सिस्टम या टीवी आदि के साथ के साथ अटैच करके
स्थायी तरीके से रखे जा सकते हैं और दूसरे वे जो मूवमेंट वाली डिवाइसों
(टैब और मोबाइल आदि) के साथ आराम से इधर-उधर किए जा सकते हैं।
इनको भी जानें स्पीकर खरीदने का ख्याल आते ही PMPO और RMS जैसे कुछ खास शब्द आपके दिमाग में कुलबुलाने लगते होंगे। इनके बारे में जानना भी बहुत जरूरी है।
PMPO (Peak Music Power Output) यह शब्द आपको लगभग हर म्यूजिक सिस्टम के प्रचार में सुनाई और दिखाई पड़ता होगा। आपको शायद यह जान कर हैरानी होगी कि तकनीक के मामले में इसकी कोई अहमियत नहीं है और न ही यह किसी स्पीकर की ताकत नापने का कोई स्टैंडर्ड पैमाना है। यह प्रचार की दुनिया में गढ़ा गया एक शब्द है, जो स्पीकर से आने वाली सबसे ऊंची आवाज को आइडियल कंडिशन में नाप कर बनाया गया है। PMPO का नंबर ज्यादा होना स्पीकर के अच्छे होने की गारंटी नहीं देता।
RMS (Root Mean Square) कई स्पीकर इसको स्पीकर की क्षमता को नापने की बेहतर यूनिट मानते हैं। आरएमएस के जरिए हम यह पता लगा सकते हैं कि लगातार बजाने पर कोई स्पीकर कितनी तेज और साफ आवाज में बज सकता है। सरल भाषा में समझें तो आरएमएस के पैमाने पर कस कर स्पीकर खरीदने में ही समझदारी है। जितना अधिक आरएमएस होगा, उतनी ही बेहतर आपको आवाज मिलेगी। आमतौर पर इसे वॉट में नापा जाता है। हालांकि इसे भी कई जानकार स्पीकर का सटीक पैमाना नहीं मानते।
Hz (हर्ट्ज) हमारे कानों तक कोई आवाज कंपन के कारण ही पहुंचती है और कंपनों को नापने के पैमाने को हर्ट्ज कहा जाता है। इस लिए स्पीकर की संवेदशीलता (फ्रीक्वेंसी) को भी हर्ट्ज से ही नापा जाता है। स्पीकर की फ्रीक्वेंसी रेंज जितनी ज्यादा होगी उतनी ही अलग-अलग आवाजें हम सुन सकेंगे। इंसानी कान 20hz-20,000hz तक की आवाज को आसानी से सुन सकते हैं।